मंदाकिनी हिल – अरे नहीं, वो वाली मंदाकिनी नहीं!
एक सुबह जब मैं अपनी “कुछ ना करने वाली” दिनचर्या में व्यस्त था, तभी व्हाट्सऐप पर एक टन-टन हुई – डॉ. अजय का मैसेज था – “इस रविवार मंदाकिनी हिल ट्रेक पे चलना है?”
अब भाई, मंदाकिनी नाम सुनते ही मेरी आँखों के सामने एक ही सीन आ गया – एक सफ़ेद साड़ी में भीगी हुई नायिका और झरने के नीचे वाला सीन (वो वाला)! 😜(बाबू नहीं समझे तो राम तेरी गंगा मली देख लेना )
पर ये मंदाकिनी, उस मंदाकिनी से अलग निकली – ये थी एक हिल, एक ट्रेकिंग डेस्टिनेशन। और तुम्हे तो पता है, जहाँ कम लोग जाते हैं, मैं वहाँ ज़रूर जाता हूँ! तो बिना ज़्यादा सोचे समझे जवाब गया – “Yes Boss, I’m in!”

मिशन मंदाकिनी शुरू… ट्रेन के बिना!
रविवार आया। दिल में बच्चा जाग चुका था, और पैकिंग फुल ऑन थी। ट्रेन सुबह 6 बजे थी, और मैं स्टाइल में 5:53 पर टिकट काउंटर पर पहुंच गया। लेकिन मुंबई है बॉस, यहाँ लाइन वैसी थी जैसी सलमान की ईद वाली फिल्म की टिकेट खिड़की पर होती है।
5:57 पर टिकट हाथ में आया और मैंने ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ लगाई, बिल्कुल SRK स्टाइल में! लेकिन अफ़सोस… ट्रेन 5:58 पर आकर 5:58 बजे निकल भी गई। हाँ, ट्रेन टाइम से पहले चली गई! और मैं, ट्रैक पर खड़ा, कुच्छ कुच्छ होता है वाला सीन दोहराता रह गया।
अब आयी असली परेशानी – अजय को फोन कर के बताना पड़ा, “भाई थोड़ा लेट हो गया।” पर गनीमत ये रही कि 7:05 पर मैं विरार स्टेशन पहुंच ही गया। बस 5 मिनट लेट था, फिल्मी एंट्री बराबर टाइम पर हो गई!

ऑटो में आधे अंदर, आधे बाहर!
स्टेशन से निकलकर हम पहुंचे विरार ईस्ट साइड पर, और एक ऑटो की तलाश में निकल पड़े जो हमें हमारे बेस विलेज – केलथन ले जाए। हाँ वही, नाम थोड़ा इंग्लिश टच वाला… केलथन, ना कि केल्ट्रॉन टीवी!
अब ऑटो वालों ने जैसे हमें NRI समझ लिया – बोले ₹700 लगेंगे! भाई, ऑटो है या प्राइवेट जेट?
सोचते सोचते हम पहुँच गए बस डिपो। वहाँ VVMT के भैया पूरी सुस्ती मूड में बोले – अगली बस वज्रेश्वरी के लिए 9 बजे है।
पर हम भी कोई डेढ़ शाणे कम थोड़ा न हैं – एक बस को वज्रेश्वरी की ओर जाते देखा और DDLJ वाले अंदाज़ में उसमें कूद पड़े!
आप सोच रहे होंगे – जब जाना था केलथन, तो वज्रेश्वरी क्यों? अरे भाई, केलथन वहाँ से सिर्फ़ 3–4 किमी दूर था – प्लान था वहाँ से ऑटो पकड़ने का।

तो पहुँच गए वज्रेश्वरी। अब ऑटो में बैठे – 6 लोग और एक ड्राइवर। अब जो सफ़र शुरू हुआ, वो था एक्शन, थ्रिल और कॉमेडी से भरपूर! , किसी का दम अंदर तो किसी का बम बाहर!
विषाल भाई साहब तो बाहर लटके हुए थे जैसे रोहित शेट्टी की फिल्म में स्टंट मैन हो! रोड इतनी उछाल वाली थी कि दो बंदों ने खुद ही कहा – भाई थोड़ा पैदल ही चलते हैं!

गाइड मिलेगा क्या? नहीं मिलेगा!
हम जैसे-तैसे केलथन पहुंचे, और हमारे ऑटो ड्राइवर ने गाइड की भूमिका निभानी शुरू कर दी – गाँव वालों से पूछने लगे कि कोई हमें मंदाकिनी हिल पर ले जाएगा क्या?
दुर्भाग्यवश, किसी ने हामी नहीं भरी।
प्रीतिष बोले – “यार ये लोग आए क्यों नहीं?”
मैं बोला – “भाई शायद ज़्यादा Crime Patrol देख लिया होगा… सोच रहे होंगे ये लोग हमें ऊपर ले जाकर बलि चढ़ा देंगे!” 😂
खैर, हमको ट्रेल हेड मिल गया। शुरुवात ज़ोरदार थी, पर जल्दी ही हम एक गलत मोड़ पर मुड़ गए और पहुँच गए जंगल में… फिर एक गाँव में… फिर वापस जंगल में!

पर हमारे लिए तो “सफर ही मंज़िल है!” – हम हरियाली, खेत, और रास्ता भूलने का मज़ा ले रहे थे।
फिर अचानक एक बुज़ुर्ग मिले, जिन्होंने हमें सही रास्ता बताया। हमने उन्हें भी साथ चलने को कहा, पर उन्होंने साफ मना कर दिया। शायद सोचा होगा – “इन पागलों से दूर ही भला!”

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विषाल की GPS ट्रेल – और 90 डिग्री की चढ़ाई!
अब हमने खुद से तय किया कि सीधे ऊपर चलते हैं – और फिर जो रास्ता पकड़ा, वो था 90 डिग्री वाली चढ़ाई!

विषाल बोले – “ये कैटल ट्रेल है।”
मैं बोला – “भाई, ये कैटल है या माउंटेन गोट?”
हम सब पसीने में भीगे हुए, दिल को हाथ में लिए, जान हथेली पर लेकर चढ़ रहे थे। सूरज सर पर, उमस साथ में – और हम हर दो मिनट में बारिश और हवा की दुआ कर रहे थे।

और फिर, जैसे फिल्म का क्लाइमेक्स, बारिश शुरू हो गई और ठंडी हवा भी आ गई। सबने कहा – “Yeh toh God ka signal tha!”
देवदार गुफा – ड्रामा ऑन द रॉक्स!
हम आखिरकार पहुँचे पठार पर – और विकीलोक की मदद से चोटी पर। वहाँ से मुड़े बाईं ओर देवदार गुफा की तरफ़।
लेकिन भाई, “रुकावट के लिए खेद है!”
जो पत्थर का पैच था गुफा तक पहुंचने के लिए – वो था गीला, फिसलन भरा और पूरा Moss से भरा हुआ।

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अब विषाल ने फिर सिंघम मोड ऑन किया – और वो चढ़ गए उस पर। मैं पूरा टाइम चिल्ला रहा था – “भाई वापस आ जा, ये तेरा ट्रेल नहीं है!”
किसी तरह वापस आ गए, और जो तस्वीरें आप देख रहे हैं वो सब विषाल की पागलपंती का तोहफा हैं!

बाकी सबने मिलकर कहा – “जान है तो गुफा है!” और वहीं पठार पर बैठकर लंच निकाला – हंसी-मज़ाक, किस्से, चिप्स, और पेट की घंटी सब बज रही थी!

वापसी – इस बार समझदारी के साथ!
वापसी का रास्ता हमने इस बार सही वाला पकड़ा – कोई 90 डिग्री नहीं, कोई स्टंट नहीं!
नीचे उतरते हुए एक झरना दिखा और फिर क्या – ZNMD मूड ऑन! सब पानी में झूम रहे थे।
मैं तो पानी में पूरा लोटपोट हो गया था… तभी एक नाग देवता ने दर्शन दिए। और मेरा रोमांटिक मूड गया पानी में – उसी वक्त मैं नागिन बनकर पानी से छलांग मारकर बाहर आ गया!

जब हमें लगा कि अब सब कुछ खत्म हो गया – पहाड़ी चढ़ ली, पानी में डुबकी मार ली, पेट पूजा हो गई – तभी आया “पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त” वाला पल!
हम बेस विलेज तक तो पहुंच गए, पर वहां आकर पता चला… कोई लौटने का साधन ही नहीं है!
ना ऑटो, ना जीप, ना बैलगाड़ी – कुछ नहीं।
थके-हारे हम सब एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। फिर फैसला हुआ – “चलो भाई, वज्रेश्वरी मंदिर तक पैदल ही निकल पड़ते हैं!”

और इस तरह शुरू हुई हमारी बोनस ट्रेकिंग – लंबी, थकाऊ, लेकिन यादगार।
मैं और प्रीतेश रास्ते भर मस्ती करते रहे – कभी जोक, कभी फोटो, कभी एक-दूसरे की टांग खिंचाई – दर्द को भी हंसी में बदल दिया।

इसी बीच, जो लोग पीछे थे, वो शायद किसी सवारी वाले भगवान के दर्शन कर आए – उन्हें कुछ न कुछ मिल गया।
पर हम तो कर्म के पुजारी निकले – लिखा था चलना, तो हम चल पड़े!
इस मेहनत भरे सफर का इनाम? एक प्लेट गरमागरम, तीखी-चटपटी मिसल पाव!
मैं और प्रीतेश ने खुद को “अवार्ड सेरिमनी” दी – स्वाद के साथ साथ आत्मा भी तृप्त!
थोड़ी देर में बाकी ट्रेकर्स भी पहुंचे और सबने मिलकर खाना खत्म किया।

आख़िरकार, हमने पकड़ी वापसी की एस.टी. बस – जो इतना धीरे चली, जैसे कुम्भकर्ण नींद से उठकर बस चला रहा हो!
ऊपर से ड्राइवर साहब के Fast & Furious अंदाज़ और “खड़े रहो – आराम करो!” सुविधा ने शरीर तोड़कर रख दिया।
सबसे बड़ा चैन का पल तब आया – जब हम विरार स्टेशन पहुंचे, ट्रेन पकड़ी और अपने-अपने घर रवाना हुए –
थकी हुई टांगे, भरे हुए दिल, और यादों की भारी भरकम झोली लिए!
मंदाकिनी का फैसला? एकदम मस्त!
तो क्या ये सब करना वाजिब था? ट्रेन मिस करना, गलत रास्ता पकड़ना, जान पर खेलकर चढ़ना, साँप से सामना करना?
बिलकुल!
मंदाकिनी हिल में भले ही सफेद साड़ी वाली नायिका नहीं मिली, लेकिन मिले हंसी के फव्वारे, दोस्ती की मिठास और एक यादगार एडवेंचर।
क्योंकि आखिर में… दिल हमेशा घूमने को तैयार है!

अंतिम विचार
मंदाकिनी हिल ने हमें सिर्फ़ एक ट्रेक से कहीं ज़्यादा दिया – इसने हमें हँसी, उथल-पुथल, दुर्घटनाएँ और मिसल पाव दिया। और यही इन यात्राओं को अविस्मरणीय बनाता है।
क्योंकि जब आप सही लोगों के साथ यात्रा करते हैं – तो हर ग़लत मोड़ एक याद बन जाता है।


