अगर आप जोधपुर के मेहरानगढ़ किले का दौरा कर रहे हैं, तो आपको किले से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित जसवंत थड़ा का दौरा ज़रूर करना चाहिए। जसवंत थड़ा सफ़ेद संगमरमर से बना एक स्मारक है जो मेहरानगढ़ के जोधपुर दुर्ग के पास स्थित है। इसे सन 1899 में जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय (1888-1895) की यादगार में उनके उत्तराधिकारी महाराजा सरदार सिंह जी ने बनवाया था।
यह स्थान जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार के लिये सुरक्षित रखा गया था। इससे पहले राजपरिवार के सदस्यों का दाह संस्कार मंडोर में हुआ करता था। पर्यटकों के भ्रमण के लिए, नीले शहर की हलचल से दूर यह एक सुंदर हिस्सा है , जिस का आनंद यात्रियों ने लेना चाइए।
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मेहरानगढ़ किले से नीचे उतरते हुए हम लोग करीब एक km चले होंगे जब हमें यह सुन्दर स्मारक देखने को मिलती है। स्मारक की पार्किंग के पास ही घोड़े पर विराजमान महाराज राव जोधा जी की विशालकाय मूर्ती है। यहां से पीछे खड़ा विशाल मेहरानगढ़ किला बहुत ही मनमोहक लगता है ।
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हम लोगो ने समारक जाने के लिए टिकट ली और सिक्योरिटी चेक करवा के अंदर की ओर चल पड़े. कुछ कदम चले ही थे कि हमें एक मधुर संगीत सुनाई दिया,आगे जाकर देखा तो पता चला की यह तो कोई स्थानीय कलाकार था जो इकतारा बजा रहा था। हमने कुछ फोटोज लिए उसके साथ और आगे बढ़ गए.
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समारक में प्रवेश करने से पहले बहुत ही सुन्दर स्तंभ बने हैं , जिनके पास से ऊपर कुछ सीढ़ियाँ जाती हैं ।
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समारक स्थल में अंदर आते ही हमारी नज़र एक विशाल बगीचे पर पड़ती है,
और वहीं से ऊपर जाती सीढ़ियाँ हमें एक सफ़ेद रंग के सुन्दर समारक की तरफ ले जाती हैं।
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इस विशाल स्मारक में संगमरमर की कुछ ऐसी शिलाएँ भी दीवारों में लगी हैं जिनमें से सूर्य की किरणे आर-पार जाती हैं।
इस स्मारक के लिये जोधपुर से 250 कि, मी, दूर मकराना से संगमरमर का पत्थर लाया गया था।
स्मारक के पास ही एक छोटी सी झील है जो स्मारक के सौंदर्य को और बढा देती है इस झील का निर्माण महाराजा अभय सिंह जी (1724-1749) ने करवाया था।
समारक के बाहरी हिस्से में टेरेस(terrace) है, जहाँ से आप आगे का विशाल सुन्दर बगीचा देख सकते हैं और उस बगीचे में सफ़ेद रंग में तीन छोटे -छोटे समारक बने हैं।
हम लोगों ने कुछ और समय वहां बिताया और फिर निकल पड़े उमेद भवन की ओर।
जसवंत थड़ा जोधपुर के बारे में कुछ रोचक तथ्य
१. जसवंत थड़ा एक 19 वीं शताब्दी का शाही सेन्टाफ है, जिसे महाराजा सरदार सिंह ने अपने पिता महाराजा जसवंत सिंहजी द्वितीय की स्मृति में बनाया था, जो जोधपुर के 33 वें राठौड़ शासक थे।
२. इस स्मारक को बनाने में 2,84,678 रूपए का खर्च आया था
३. जोधपुर के इस खूबसूरत वास्तुशिल्प स्थल को मारवाड़ के ताज महल के रूप में जाना जाता है
४. जसवंत थड़ा के प्रवेश से पहले एक घोड़े पर बैठे हुए महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय की एक बड़ी संगमरमर की मूर्ति है।
५. स्मारक संगमरमर की नक्काशीदार चादरों से बनाया गया है जो बेहद पतली और पॉलिश हैं, इसलिए जब सूर्य की किरणें सतह पर पड़ती हैं तो वे एक सुनहरी चमक का उत्सर्जन करते हैं
६. जसवंत सिंह द्वितीय के मुख्य मकबरे के अलावा, स्मारक के अंदर दो और कब्रें हैं।
७. 13 वीं शताब्दी में जोधपुर के महाराजाओं की तस्वीरें दीवारों पर लटकी हुई हैं।
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