लोग अक्सर मेरे और कई अन्य घुम्मकड़ लोगों के फेसबुक और इंस्टाग्राम की कहानियों पर मुस्कुराते हुए चेहरे देखते हैं और वे महसूस करते  होगें  ओह! यह  लोगों के तो मज़े  ही मज़े,पर मेरे प्यारे दोस्तों  यह केवल वह मुस्कुराहट है जिसे आप देखते हैं, हालांकि उन हंसी के पीछे कई बार दर्द, पीड़ा, डर की भावना और कभी-कभी असहाय होने की दास्तां होती है जो आप नहीं देख पाते।  लेकिन यह भी यात्रा जीवन का एक हिस्सा है और यह सब आपको मेरे इस ब्लॉग में  देखने मिलेगा। जीवन कभी भी एक आयामी नहीं होता है यह हमेशा बहुआयामी होता है शायद इसलिए यह बहुत दिलचस्प है।

 

मुस्कुराते चेहरों को देख कर धोखा ना खाना

 

राजस्थान डायरीज शीर्षक के  मेरे इस ब्लॉग में मैं उन ब्लॉगों की श्रृंखला अपलोड करूंगा जिनमें मैं अपनी रोजमर्रा की यात्रा आपके साथ साझा करूंगा। इसलिए अपनी सीट बेल्ट बांधें और उदयपुर, चित्तौड़गढ़, रणकपुर, नाथद्वारा और कई अन्य ऑफबीट स्थानों की आभासी यात्रा के लिए तैयार हो जाएं।

 

Covid के बाद पहली यात्रा

 

दिन 1

18 फरवरी, 2021: हम बांद्रा उदयपुर सुपरफास्ट ट्रेन में सवार हुए , जो 11:25 बजे बांद्रा टर्मिनस से रवाना होती है  और लगभग 3:15 बजे उदयपुर पहुँचती है , हम स्टेशन पर जल्दी पहुँच गए थे इसलिए हमें कुछ तस्वीरें क्लिक करने का अवसर मिला। कोविड  के बाद यह मेरी पहली यात्रा थी, इसलिए स्वाभाविक  रूप से मैं बहुत उत्साहित था।

 

बांद्रा उदयपुर सुपरफास्ट ट्रेन जाने को तयार हैं।

 

जब ट्रेन ने बांद्रा टर्मिनस को छोड़ दिया तो यह पूरी तरह से भरी नहीं थी लेकिन जैसे ही बोरीवली स्टेशन आया, एक गुजराती समूह हमारी  ट्रेन में सवार हो गया और रात भर १ -२  बजे तक वे चिल्ला रहे थे और सब  शोर कर रहे थे, महिलाये अपनी  बाते करने में लगी थी देर रात तक। उस  समय मुझे उन पर चिल्लाने का बहुत मन  हो रहा था, लेकिन सौभाग्य से उन लोगो को महसूस हो गया था  कि मेरा अत्ता माझी सतकली ( डोंट एंग्री मी )क्षण कभी भी हो सकता है, इसलिए चिल्लाना थम गया, गपशप बंद हो गई और मैं अंत में सो पाया था। 

 

 

यारो काश! कोई ऐसे लोगो को ट्रैवेलिंग शिष्टाचार  सिखा  दे कि  ट्रेन  इनके बाप की नहीं है , ऐसे चिलम – चिल्ली  कर रहे थे जैसे शादी पर आये  हो।  ट्रेन  में सफर करने के समय अन्य यात्री के बारे में भी विचार करना चाहिए कि  उनको  बिना वजह कोई परेशानी नहीं होनी चाहिये  ।

 

Day-2

 19 फरवरी, 2021:मैं विशेष रूप से ट्रेन में यात्रा  करते  समय  हल्की  नींद ही कर पता हूँ  । मैं सुबह 6 बजे तक उठ गया था और सुबह रतलाम स्टेशन से गरम गरम पोहे नाश्ते में लिए और साथ ही मस्त चाय। ट्रेन  में चाय पीने का कुछ अलग ही आनंद होता हैं। सुबह होते – होते वो गुजराती समूह की  हमारे  साथ दोस्ती हो गयी थी, सुबह होते ही गुजराती  महिलाये भजन गाने लगी, मुझे बाद में पता चला कि  ये  लोग श्रीनाथजी के दर्शन करने नाथद्वारा जा रहे थे। 

रतलाम के पोहे का कमाल देखो की दिमाग की बत्ती  जल उठी  , मैंने गाड़ी का टाइम टेबल देखा तो पता चला की हमारी गाड़ी १२.२५  दोपहर में चित्तौड़गढ़ पहुँचेगी, न की १३.२५ इसलिए मैंने अपनी पत्नी से कहा “ हम लोग क्यों उदयपुर जाने में 2 घंटे बर्बाद करते हैं, चलो  हम  चित्तौड़गढ़ स्टेशन पर  ही उतर जाते हैं ” मेरी  इस सोच के पीछे मेरा तर्क यह था कि दोपहर के 3.१०  बजे  होंगे जब हम उदयपुर पहुँचेंगे और जब तक हम अपने होटल पहुँचेंगे और चेक इन करेंगे तब तक  शाम हो गयी होगी  जिसके कारण पूरा दिन बेकार हो जाएगा। मेरी पत्नी थोड़ी  शुरू में बड़बड़ायी ,बोली  “आप हमेशा ऐसा ही करते हो बोलते कुछ हो और प्रोग्राम कुछ और का बना देते हो… अब कहीं  मध्यप्रदेश चलने का प्रोग्राम  मत बना देना”  लेकिन अंत में मेरी धर्मपत्नी हमेशा मान  जाती हैं ,यह सब से अच्छी बात है उसकी … अब उसको पता है न कि एक पागल घुम्मकड़  से शादी  की है अब झेलो !

 

पागल घुम्मकड़

 

 

लोगो के साथ तो कभी -कभी होता लेकिन मेरे साथ हमेशा ही ऐसा होता है,जाते थे जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना। 

जानी  जीवन में सब सीधा- सीधा  हो तो  जीवन में मज़ा  ही क्या,

थोडा मोड़ ,थोड़ा उलट -पलट भी ज़रूरी है….  तभी  तो उत्साह और रोमांच बना रहता है 

सही बोला ना  बीड़ू 

 हम ट्रेन से चित्तौड़गढ़ प्लेटफार्म पर उतर जाते हैं, पत्नी कहती हे “आपने ने तो गाड़ी ऐसे छोड़ दी मानो  जैसे गरम गरम आलू हाथ से छूट जाता” स्टेशन पर उतर कर जब हम अपनी एक- एक कर के तस्वीर लेने लगे तो हमारे   गुजराती  दोस्त ने कहा लाओ मैं  आप दोनों की तस्वीर खींच  देता हूँ ।    दोस्तों देखा सफर का जलवा नए दुश्मन भी पुराने दोस्त बन जाते हैं। 

 

यह हमारा फोटो जो गुजराती दोस्त ने लिया

 

 

 ट्रेन से नीचे उतरने के बाद मेरी अगली  सब से पसंदीदा गतिविधि यह है कि मुझे स्टेशन  के नाम के बोर्ड के साथ तस्वीर लेने का शौक है “मेरा मानना यह है कि  मैं अगर ऐसा नहीं करूँगा तो वह बेचारा रेलवे स्टेशन बुरा मान जायेगा” गर्मी में और वह भी मेरी मन मुताबित तस्वीर लेना पत्नीजी के लिए सिरदर्द बन गया था. हमारी अक्सर  लड़ाई हो जाती है जब मैं  कहता हूँ  देखो मैंने तुम्हारी कितनी अच्छी  फोटो ली और तुम ने तो मेरी फोटो की बैंड  बजा दी। ऐसे समय  मुझे अपनी बेटी की बहुत याद आ रही थी जो तस्वीरें लेने में तेज है।

 

मेरी स्टेशन बोर्ड के साथ की फोटो का बैंड बज गया इसीलिए पत्नी की फोटो लगा रहा हु।

 

इस  फोटो सेशन के बाद, जब  हम स्टेशन से बाहर  निकल रहे थे तो मेरी नज़र रेलवे स्टेशन की  दीवारों पर बनी  प्यारी पेंटिंग पर पड़ी  मैंने इन पेंटिंग  को क्लिक करना शुरू कर दिया और जैसे ही मैं तस्वीरों को क्लिक कर रहा था, एक सज्जन ने आकर कहा कि वह मेरी और पत्नी की तस्वीर निकाल देते हैं , इसलिए मैंने अपना कैमरा उन्हे सौंप दिया, पहले तो वह आराम से  हमारी फोटो लेते रहे  लेकिन फिर…. 

स्टेशन की दीवारों पर बनी सुंदर तस्वीरें

 

मेरा विश्वास करो जब वे व्यक्ति  थोड़ा पीछे हटने लगा  तस्वीरों को क्लिक करने के दौरान मैं घबरा गया था। और फिर वह अचानक नीचे के ओर  झुक जाता है  तो उस एक पल के लिए मेरा दिल लगभग मेरे मुंह में था मुझे लगा कि वह मेरे कैमरे के साथ भाग जाएगा….. बस मुड़ा और भागा 

 

यह स्माइल के पीछे कैमरा खोने का डर भी था।

 

लेकिन मुझे तब जाकर राहत का एहसास हुआ जब मेरी समझ  में आया कि  वह फोटो निचले कोण(angle) से क्लिक करने की कोशिश कर रहा था। हे भगवान्  ! बाद में मैंने उसके साथ कुछ देर बात की और पता चला कि वह स्टेशन पर बुकिंग क्लर्क है। जब मैंने उनसे पूछताछ  की कि चित्तौड़गढ़ किले तक कैसे पहुंचा जाए तो उन्होंने कहा कि मैं या तो स्टेशन के बाहर से  शेयरिंग ऑटो  कर सकता हूं  जो २० रुपया प्रत्येक  सीट लेता है या एक निजी ऑटो को चित्तौड़गढ़ में किराए पर ले सकता हूं जो मुझसे 550 या अधिक रुपये लेगा। (यह किराया, आप कितने बड़े मूर्ख हैं, इस पर निर्भर करता है )

 

 

वैसे भी हम भूखे थे इसलिए दोपहर का भोजन हमारी पहली प्राथमिकता थी, “खाली  पेट  भजन हा होये … तो घुम्मकड़ी कैसे  होए” मैंने स्थानीय लोगों से  कोई स्टेशन के पास  अच्छा  खाना खाने की होटल पूछी तो उन्होंने आशीर्वाद डाइनिंग हॉल जाने का सुझाव दिया ,   भोजन वास्तव में अच्छा था और थाली 130 रुपये में  मुझे उचित लगी  । मुझे थाली  में राजस्थानी कढ़ी बहुत पसंद आई ।

 

स्वादिस्ट राजस्थानी थाली

 

अपना दोपहर का भोजन समाप्त करने के बाद हम डाइनिंग हॉल से बाहर आए और डाइनिंग हॉल के सामने एक  बाइक किराये की दुकान को देखा, इसलिए हमने वहां जाकर एक एक्टिवा किराये पर ली।  चूंकि हम दो लोग थे और हमारे कंधों पर दो बैग थे इसलिए दुकानदार  ने सुझाव दिया कि आप लोग दोनों का  बैग के साथ एक बाइक पर जाना संभव नहीं हो सकता है इसलिए उन्होंने मेरी  पत्नी को होटल छोड़ने के लिए अपने स्टाफ में से एक को कहा  और मैं  किराए के एक्टिवा पर होटल  पर उनके पीछे पीछे चल दिया । चूँकि होटल की बुकिंग अंतिम समय पर हुई थी, इसलिए हमें कुछ आलीशान होटल नहीं मिला रहने को , लेकिन फिर भी रहने योग्य था।

“अपुन का एक ही कहना है…..   बोले तो यात्रा में जयादा नखरा नहीं होना मांगता है।”

 इस बीच मैं चित्तौड़गढ़ के अपने एक Fb दोस्त राजेश जी के संपर्क में था जिन्होंने मुझे चित्तौड़गढ़ पहुँच कर   आश्चर्यचकित कर दिया, उन्होंने मुझसे मिलने के लिए नीमच से 40 किलोमीटर से अधिक दूरी तय की और हमारी मुलाकात मुश्किल से कुछ मिनटों तक चली, काश उन्होंने  मुझे  थोड़ा पहले सूचित किया होता तो हम एक साथ दोपहर का भोजन कर सकते थे। मैं उनसे  पहले कभी नहीं मिला था  वह केवल एक फेसबुक मित्र थे और फिर भी यहाँ एक शिष्टाचार के नाते  मुलाकात करने  के लिए आ गए थे , उन्होंने  मुझे अपनी बाइक सफर में इस्तेमाल  करने की पेशकश  की थी और कहा कि  आप  जब तक  उदयपुर में हो इसे इस्तेमाल कर सकते हो  लेकिन मैंने विनम्रता से मना कर दिया। मैं अभिभूत हूँ सर आपका धन्यवाद राजेश जी। 

राजेशजी से एक मुलाकात चित्तोरगढ़ मे

 

जब हम दोपहर में अपने होटल से बाहर निकले तो बहुत गर्मी थी इसलिए हमने तय किया कि हम शाम को चित्तौड़गढ़ किले पर जाएंगे  और वहाँ से सूर्यास्त देखेंगे और अब हम सांवलिया सेठ मंदिर जाएंगे।

यह मंदिर चित्तौड़गढ़ से लगभग 40-45 किलोमीटर दूर है इसलिए हमने अपना एक्टिवा लिया  और चित्तौड़गढ़-उदयपुर हाईवे की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और कुछ दूरी तय करने के बाद हम गाड़ी चला रहे थे कि अचानक मुख्य सड़क के बीच में से एक बड़ा स्पीड ब्रेकर आ जाता  है, मैं अचानक एक्टिवा के ब्रेक  लगाता  हूँ  लेकिन मेरी  अपेक्षा  से एक्टिवा के ब्रेक काफी कमजोर साबित हुए और एक्टिवा बिल्कुल भी धीमा नहीं हुआ और यहीं पर मेरी पत्नी फिसल गई और गिर गई, उसकी उंगली की त्वचा छिल गई थी और खून निकलने लगा था, उसके घुटनों को भी चोट लगी थी, शाम को हमें पता चला कि उसके घुटनों पर सूजन थी।

याद रखें मैंने  क्या कहा था कि तस्वीरों की  मुस्कुराहट पर  मत जाओ अक्सर दर्द और दर्द के किस्से होते हैं उन मुस्कुराते चेहरों के पीछे। मैं रक्त बहाव को देखकर बहुत चिंतित था और उस पर आस-पास कोई चिकित्सक नहीं था, किसी के पास बर्फ भी नहीं थी। मैंने एक्टिवा को सड़क के किनारे  पार्क किया और स्थानीय लोगों से पूछताछ करने लगा कि अगर कोई डॉक्टर पास में है, तो सौभाग्य से दुकानदार में से एक ने मुझे बताया कि वहाँ एक केमिस्ट की दुकान है, शायद वहाँ का व्यक्ति उंगली पर लगे घाव की मलहम  पट्टी कर सकता है । इसलिए मैं केमिस्ट की दुकान तक एक्टिवा पर पत्नी को लेकर  गया  और मैंने ड्रेसिंग करवाई। मैं थोड़ा हिल गया था इस हादसे से , इसलिए मैं वापस मुड़कर होटल जाना चाहता था लेकिन मेरी पत्नी ने कहा कि हम इतनी दूर आ ही गए है तो सिर्फ मंदिर में दर्शन कर आते हैं  और आज के लिए चित्तौड़ किले को छोड़ दें।

 

 

हम फिर धीरे धीरे एक्टिवा चलाते  हुए सांवरिया जी के मंदिर की ओर  चल पड़े। 

लगभग डेड घंटे की ड्राइव के बाद हम लोग बरसोड़ा  चौक या चौराहा पहुँचे,वहां अपने बाएं हाथ की ओर हमने एक विशाल मंदिर परिसर देखा, पहले मुझे लगा कि यह सांवलिया का मंदिर है, लेकिन मुझे बताया गया कि यह श्री सांवलिया जी का  प्राकट्य मंदिर है, वास्तव में 3 मूर्तियाँ मिली थीं, । एक को यहाँ रखा गया है, एक को दूसरे गाँव में रखा गया है और एक जिसे हम देखने जा रहे हैं, वह मंडफिया गाँव में है। कुल मिलाकर सांवरिया जी की तीन मूर्तियाँ तीन अलग-अलग स्थानों पर हैं।

श्री सांवलिया जी का  प्राकट्य मंदिर

 

बरसोड़ा  चौक पर हाइवे से हमने लेफ्ट टर्न लिया और 4 किलोमीटर ड्राइव  करके  मांडफिया के सांवरिया मंदिर पहुंचे । मंदिर का परिसर बहुत बड़ा है और एक बार जब आप मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आप देखते हैं कि यह एक सुंदर रूप से बना हुआ मंदिर है, जिसमें खंभे, विशाल उद्यान और एक भव्य मंदिर है। आप सांवरिया मंदिर के बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए यह  लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

 

सांवरिया मंदिर, मांडफिया

 

हमने कुछ समय यहाँ बिताया और सांवलियाजी के प्रति अपने सम्मान दर्शाया और वापस राजमार्ग पर चले गए जहाँ हमने श्री सांवलिया जी प्राकट्य मंदिर में दूसरी मूर्ति के दर्शन कर रहे थे। मैं तीसरी मूर्ति के दर्शन करने से चूक गया क्योंकि उस  दुर्घटना  से अभी भी  उबर नहीं पाया था ।

शाम को चित्तौड़ पहुंचने के बाद मैं डॉ। अजय त्यागी जी के संपर्क में आया जो हमारे यात्रा समुदाय GDS से हैं। उन्होंने कुछ दवाएं  बताई और घुटनो की सर्द और गरम सिकाई करने को कहा।मैं सारी रात इसी उधेड़बुन  लगा रहा  कि मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी और क्या हम कल चित्तौड़ किले देखने जा पाएंगे की नहीं या क्या हम वापस मुंबई जाना पड़ेगा  …।

जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए।  

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Hi, I am Aashish Chawla- The Weekend Wanderer. Weekend Wandering is my passion, I love to connect to new places and meeting new people and through my blogs, I will introduce you to some of the lesser-explored places, which may be very near you yet undiscovered...come let's wander into the wilderness of nature. Other than traveling I love writing poems.

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Aashish Chawla
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